हेडमास्टर देवा भाऊ और हंटर वाली बाई!


लेखक: विवेक भावसार
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“हंटर वाली बाई” इस शब्द को गलत अर्थ में न लें। 60-70 साल की उम्र के लोग इस शब्द को समझ सकते हैं। बहुत पहले, हिंदी सिनेमा में एक बहुत ही सुंदर और बुद्धिमान अभिनेत्री हुआ करती थीं, जिनका नाम फियरलेस नादिया था। उन्होंने हंटरवाली नाम की एक फिल्म की थी, जो उस जमाने में काफी मशहूर हुई थी। इस संदर्भ में, मैं यह शब्द केवल अनुशासन स्थापित करने वाली महिला के अर्थ में इस्तेमाल कर रहा हूं।
असल मुद्दे पर आते हैं
जब देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली, तो शुरुआती दिनों में उनके और एकनाथ शिंदे के बीच विवाद था, जो आज भी है। यही कारण था कि मंत्रिमंडल विस्तार में देरी हुई। अब यह इतिहास बन चुका है, पूरा मंत्रिमंडल कार्यरत है, और देवेंद्र फडणवीस ने प्रशासन पर सख्ती से ध्यान देना शुरू कर दिया है। साफ शब्दों में कहें, तो उन्होंने सफाई अभियान शुरू कर दिया है।
जब एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री थे, तब मंत्रालय या विधान भवन में भारी भीड़ हुआ करती थी। इस वजह से प्रशासनिक कामकाज, खासकर मंत्रालय में काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए, बेहद मुश्किल हो जाता था। मंत्रिमंडल की बैठक वाले दिन मंत्रालय में लगभग 17,000 आगंतुकों का आना एक ऐतिहासिक घटना थी। यही हाल विधान भवन का भी था, खासकर अधिवेशन के दौरान। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस अनावश्यक भीड़ को बाजार कहा था। इस बाजार को बंद करने के लिए उन्होंने मंत्रालय में प्रवेश को लेकर बेहद सख्त नियम लागू किए हैं।
अब मंत्रालय में प्रवेश पहले की तरह आसान नहीं रहा। यहां काम करने वाले करीब 10,000 अधिकारी और कर्मचारी भी अब फेस रिकग्निशन सिस्टम (चेहरे की पहचान करने वाली मशीन) से गुजरते हैं, तभी दरवाजा खुलता है और उन्हें प्रवेश मिलता है। आम नागरिकों को प्रवेश पास दिया जाता है, लेकिन निकट भविष्य में यह भी मुश्किल हो सकता है। अब मंत्रालय में कौन, कितनी बार आता है, इसका पूरा रिकॉर्ड रखा जा रहा है। अगर कोई आगंतुक कल आया था और आज फिर आ गया, तो उसे प्रवेश नहीं मिलेगा।
अगर इस इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली का इस्तेमाल मंत्रालय में भीड़ को नियंत्रित करने और अधिकारियों को बेहतर तरीके से काम करने का मौका देने के लिए किया जा रहा है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन असली सवाल यह है कि सामान्य जनता को मंत्रालय आने की जरूरत ही क्यों पड़ती है? क्या इस नीति को लागू करने वाले IAS अधिकारी, जो मंत्रालय के पास सरकारी बंगलों में रहते हैं, उन्होंने कभी इस पर विचार किया है?
लोकशाही दिवस (जनता दिवस) फिर से शुरू करें!
करीब 10 साल पहले, राज्य में जिला स्तर पर लोकशाही दिवस (जनता दिवस) मनाया जाता था। नागरिक अपनी शिकायतें लेकर जिला कलेक्टर कार्यालय जाते थे और ज्यादातर मामलों में उनका समाधान वहीं हो जाता था। अगर वहां समाधान नहीं होता, तो अगला चरण संभागीय स्तर पर होता और अंतिम स्तर मंत्रालय होता था।
अगर सिर्फ इसलिए कि यह योजना कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुई थी, इसे बंद कर दिया गया, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। फडणवीस सरकार को इसे फिर से शुरू करना चाहिए, ताकि मंत्रालय पर दबाव कम हो जाए।
500 रुपये में मंत्रालय प्रवेश!
मुख्यमंत्री महोदय, एक तरफ आम आदमी मंत्रालय में प्रवेश पास के लिए 2-3 घंटे लाइन में खड़ा रहता है, तो दूसरी तरफ कुछ भ्रष्ट सरकारी वाहन चालकों की मिलीभगत से 500 रुपये में कुछ लोगों को बिना किसी जांच-पड़ताल के मंत्रालय में प्रवेश मिल रहा है।
हां! यह सच है। सरकारी वाहनों को मंत्रालय में प्रवेश पास मिला होता है, और कुछ चालकों ने इसका दुरुपयोग करके इसे एक धंधा बना लिया है। ये चालक खास लोगों को मंत्रालय के बाहर LIC बिल्डिंग के पास बुलाते हैं, फिर अपनी गाड़ी में बैठाकर उन्हें सीधे मंत्रालय में ले जाते हैं। इन आगंतुकों की कोई जांच नहीं होती, न ही उनसे कोई पास मांगा जाता है। ये भी दलाल ही हैं। इन पर कब कार्रवाई होगी?
एक ही कार्यालय में जाने की शर्त हटाएं!
मान लीजिए कोई नागरिक मंत्रालय पहुंच भी गया, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं कि संबंधित अधिकारी उसे मिलेंगे। लंच के बाद या दोस्तों से मिलने के बहाने कई अधिकारी मंत्रालय के बाहर MLA निवास या एक्सप्रेस टॉवर के पास की चाय की दुकानों पर समय बिताते देखे जा सकते हैं।
ऐसे में सरकार कह रही है कि एक दिन में एक ही कार्यालय में जाने की अनुमति होगी।
अगर कोई व्यक्ति कोल्हापुर, चंद्रपुर, सिंधुदुर्ग, धुले, नंदुरबार जैसे दूर-दराज के जिलों से आता है और उसे कई अधिकारियों या मंत्रियों से मिलना है, तो वह मुंबई में कितने दिन ठहरेगा? क्या वह इतना खर्च वहन कर सकता है? और मान लीजिए, वह किसी तरह मुंबई में रुक भी गया, तो क्या उसकी समस्या हल हो जाएगी? यह मूल सवाल है। इसलिए इस नियम को शिथिल किया जाना चाहिए।
सभी दलाल नहीं होते!
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बार-बार कहा कि दलालों को मंत्रालय में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री महोदय, असली दलाल अब लायजनर बन चुके हैं और उन्हें मंत्रालय आने की जरूरत ही नहीं पड़ती। मंत्री बंगलों में उनके लिए रेड कार्पेट बिछा होता है।
रात में मंहगी गाड़ियों में आने वाले इन तथाकथित बिचौलियों की कोई जांच नहीं होती। उनके लिए मंत्री कार्यालय से गेट पर फोन जाता है, और वे बिना किसी रुकावट के मंत्रालय में प्रवेश कर जाते हैं। अगर दलाली बंद करनी है, तो इन पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।
दवा ले जाने पर रोक क्यों?
मुंबई और उपनगरों से मंत्रालय आने वाले कई नागरिक ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं। उनकी दवाएं और पानी की बोतलें सुरक्षा गेट पर जब्त कर ली जाती हैं।
क्या मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मुख्य सचिव सुजाता सौनिक को लगता है कि हर मंत्रालय आने वाला व्यक्ति आत्महत्या ही करेगा?
अगर कुछ लोग ऐसा कर चुके हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हर कोई यही करने वाला है। इसलिए इस नियम में भी नरमी लानी चाहिए।
भविष्य के प्रधानमंत्री से उम्मीदें
देवेंद्र जी, जनता आपको भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में देख रही है। आपने अपने शारीरिक वजन और बोलने की शैली में बदलाव किया है।
प्रशासन में सुधार जरूरी है, लेकिन मंत्रालय में प्रवेश के नियम इतने सख्त न बनाएं कि जनता और सरकार के बीच की दूरी बढ़ जाए।
नियम मार्गदर्शन के लिए होते हैं, कोड़े की तरह इस्तेमाल करने के लिए नहीं। बस, यही कहना है। शुभकामनाएं!

(लेखक विवेक भावसार “राजकारण” मराठी न्यूज़ पोर्टल के संपादक हैं। उनसे 9930403073 पर संपर्क किया जा सकता है।)
