सड़क हादसे के घायलों का तुरंत होगा मुफ्त इलाज


- देश में लागू हुई कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम
- 1.5 लाख रुपए तक का कैशलेस इलाज का लाभ मिलेगा
नई दिल्ली। सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने वाले व्यक्तियों और उनके परिवारजनों के लिए बड़ी राहत की घोषणा की गई है। केंद्र सरकार ने मंगलवार को एक अधिसूचना जारी कर देशभर में सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम की शुरुआत की है।
कैशलेस इलाज की सुविधा
सड़क परिवहन मंत्रालय की गैजेट अधिसूचना के अनुसार, यदि कोई सड़क हादसा मोटर वाहन की वजह से होता है, तो उस हादसे में घायल व्यक्ति का इलाज इस स्कीम के तहत कैशलेस तरीके से किया जाएगा। यह सुविधा किसी भी सड़क पर हुए हादसे में घायल व्यक्ति के लिए लागू होगी। इसके तहत, घायल को 1.5 लाख रुपए तक किसी भी तरह का भुगतान नहीं करना होगा।
क्या होगा इलाज का खर्च?
अगर इलाज का खर्च 1.5 लाख रुपए तक आता है, तो घायल को कोई भुगतान नहीं करना होगा। इस रकम के बाद, अगर इलाज में और खर्च आता है तो वह मरीज या उनके परिजनों को भरना होगा। इसके अलावा, NHAI नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा और 1.5 लाख तक के खर्च का भुगतान सुनिश्चित करेगा।
क्या है गोल्डन ऑवर?
सड़क दुर्घटना के बाद का पहला घंटा ‘गोल्डन ऑवर’ कहलाता है, जिसमें समय पर इलाज न मिलने से कई बार मौतें हो जाती हैं। इस योजना का उद्देश्य इन्हीं मौतों को कम करना और समय पर इलाज पहुंचाना है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार कोशिश कर रही है कि 1.5 लाख की राशि को बढ़ाकर 2 लाख रुपए तक किया जा सके, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ मिल सके।
केंद्र की योजना का संदर्भ
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस योजना का ऐलान करते हुए कहा था कि सरकार सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए एक विस्तृत योजना लाने पर विचार कर रही है। यह योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA), पुलिस, अस्पतालों और राज्य की स्वास्थ्य एजेंसियों के सहयोग से लागू की जाएगी।
सड़क दुर्घटनाओं का बढ़ता आंकड़ा
भारत में 2023 में लगभग 1.5 लाख लोग सड़क हादसों में मारे गए, और 2024 के पहले 10 महीनों में 1.2 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हुए। 30-40% लोग समय पर इलाज न मिलने के कारण मौत के शिकार हो जाते हैं।
इलाज में औसतन खर्च
सड़क हादसों में घायलों के इलाज में औसतन 50,000 से 2 लाख रुपए का खर्च आता है, और गंभीर मामलों में खर्च 5-10 लाख तक पहुंच सकता है। इस स्कीम से अनुमानित रूप से 10 हजार करोड़ रुपए का बोझ हर साल पड़ेगा।