Uttarakhand

उत्तराखंडियों का”महाकौथिग” 2025:”पुढच्या वर्षी लवकर या” !के मूक उदघोष् के साथ समापन ।


प्रस्तुतिः शम्भुशरण रतूडी़

उत्तराखंड की संस्कृति परंपराओं का भव्य उत्सव तथा समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक लोक कलाओं को संजोने के उद्देश्य से आयोजित “महाकौथिग 2025” दस दिवसीय भव्यता के साथ संपन्न हो गया !
इस महोत्सव ने उत्तराखंड के विभिन्न लोकनृत्यों, संगीत, कला, और पारंपरिक रीति-रिवाजों का जीवंत प्रदर्शन किया, जिससे देशभर से आए लोगों ने उत्तराखंडी संस्कृति का आनंद लिया ।
“महाकौथिग 2025” के दौरान उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकनृत्यों जैसे छोलिया, झोड़ा, चांचरी, तांदी, और हुड़का बाजा की प्रस्तुतियां हुईं । कलाकारों ने अपने पारंपरिक परिधानों में रंग-बिरंगे और जोश से भरे नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। खासकर, छोलिया नृत्य—जो उत्तराखंड के वीर रस से जुड़ा हुआ है ! ने लोगों में खासा उत्साह भरा।

दर्शकों को भाए हरक सिंह रावत के ठुमके

इस महोत्सव में उत्तराखंड के कारीगरों ने अपने हस्तशिल्प और पारंपरिक वस्त्रों का प्रदर्शन किया, जिससे पर्यटकों को उत्तराखंड की समृद्ध कला को नजदीक से जानने का अवसर मिला। इसके अलावा, उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों जैसे झंगोरे की खीर, आलू के गुटके, भट की चुड़कानी, मंडुए की रोटी और गहत की दाल आदि व्यंजनों ने भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया ।

महाकौथिग 2025″ न केवल पारंपरिक कला और संस्कृति का उत्सव था, बल्कि इसमें उत्तराखंड की समकालीन संगीत और नृत्य शैलियों को भी मंच दिया गया। युवा कलाकारों ने पारंपरिक लोकगीतों को आधुनिक संगीत के साथ प्रस्तुत किया, जिससे यह उत्सव नई पीढ़ी के लिए भी आकर्षक बन गया।

9 फरवरी को संपन्न हुए इस उत्सव का समापन एक भव्य सांस्कृतिक संध्या के साथ हुआ, जिसमें स्थानीय लोकगायकों और नृत्य समूहों ने अपनी अंतिम अविस्मरणीय प्रस्तुतियां दीं । मुख्य अतिथि के रूप में शामिल गणमान्य व्यक्तियों ने इस महोत्सव को उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

महाकौथिग 2025″ उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और कलाओं का उत्सव था, जिसने न केवल राज्य के लोगों को बल्कि देशभर के पर्यटकों को भी उत्तराखंड की लोकसंस्कृति से परिचित कराया। इस आयोजन ने एक बार फिर साबित किया कि उत्तराखंड अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान को संजोए रखते हुए आधुनिकता के साथ कदम बढ़ा रहा है।
इस “महाकौथिग” को अपार सफलता का श्रेय पूरी “कौथिग टीम” की रात-दिन की मेहनत, प्रतिबद्धता व जज्बा जाता है

विशेषकर “श्री केशरसिंह बिष्ट” को तो एक सल्यूट तो बनता है ही है ! जिन्होंने अनेक विपरीत प्रस्थितियों से लोहा लेते हुये इस “महाकौथिग” को सफलाता की बुलन्दियों तक पहुंचाया ।

कार्यक्रम के समापन सत्र के दौरान हजारों दर्शकों ने विशेषकर महिलाओं ने जो पारम्परिक पर्वतीय परिधान में सजी थी ! ने जय “बदरी-विशाल” “जयमहाकौथिग” के जयकारे के साथ ठीक गणपति विसर्जन की तर्ज पर “पुढच्या वर्षी लवकर या !” का मूक उदघोष कर “कौथिग 2025” का समापन किया ।

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