जिस परिवार, समाज और राष्ट्र में मेरे और तेरे का प्रश्न उत्पन्न होगा, वहां महाभारत होना निश्चित है
नासिक। सिद्ध पिंपरी स्थित केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नासिक परिसर में गीता जयंती के उपलक्ष्य में श्रीमद् भागवत गीता परायण का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विशेष उपस्थिति के रुप में राजनीति विज्ञान के डॉ रंजय कुमार सिंह ने कहा कि गीता में जो त्वमेव माता च पिता त्वमेव: का अर्थ है उसी में ईश्वर का बोध हो जाता है यदि मनुष्य इस वाक्य का ह्रदय में धारण कर ले तो उसका मनुष्य जीवन सफल हो जायेगा। गीता का पहला श्लोक धर्म क्षेत्रे कुरूक्षेत्रे समवेता युत्सवह: के अनुसार धृतराष्ट्र जब संजय से प्रश्न करते हुए कहता है कि धर्म क्षेत्र और कुरु क्षेत्र में इक्ट्ठा हुए मेरे और पांडू केपुत्रों ने क्या किया? जिस परिवार, समाज और राष्ट्र में मेरे और तेरे का प्रश्न उत्पन होगा वहा पर महाभारत होना सुनिश्चित है। मेरे और तेरे के बीच में ईर्ष्या, घृणा और लोभ की भावना अलगाव बाद को जन्म देता है। वही पर पर जहा एक भाई का दूसरे भाई के बीच प्रेम और त्याग की भावना और कर्तव्य भाव होता है वहा पर रामायण का का जन्म होता है। गीता परायण कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रभारी निदेशक डॉ पी विद्याधर प्रभल ने कहा कि श्रीमद् भागवत गीता में सम्पूर्ण वेदों का सार संग्रह किया गया है इसका प्रतिदिन अध्यन करने से सरल तरीके से समझा जा सकता है गीता के 18वे अध्याय का एक एक श्लोक का प्रतिदिन अभ्यास करने से हर विद्यार्थी अपने उद्योग रूपी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। कलयुग में कर्मो का परिणाम तत्काल दिखाई देने लगता है। इसलिए हम सभी को गीता का परायण करते रहना चाहिए जिससे हम अपने सही मार्ग पर चल सके। इस अवसर पर साहित्य विभाग के डॉ संदीप जोशी ने कहा कि गीता भारतीय संस्कृति का अमूल्य निधि है गीता पर देश भर में प्रतियोगिता आयोजित होता रहता है। जिसमें भाग लेकर गीता के महत्व और ज्ञान को समझा जा सकता है। व्याकरण विभाग के डॉ राहुल शर्मा ने कहा कि सभी उपनिषद गऊ माता के समान है, दुग्ध इसका भगवान श्री कृष्ण गोपाल के समान है, सभी मनुष्य बछड़े के समान है तथा सभी भक्तगण गीता परायण अमृत का रसपान करते हैं। योग विज्ञान के डॉ शैलेश पवार ने कहा कि कुरु क्षेत्र के मैदान में जिस तरह से अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से जिज्ञासा होकर प्रश्न किया था। उसी तरह से हर विद्यार्थी को अपने गुरु से जिज्ञासु बनकर अध्यन और ज्ञान अर्जित करना चाहिए तभी अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है।ज्योतिष विभाग के डॉ जी सागर रेड्डी ने गीता में शनि और चंद्र के महत्व के ऊपर अपना विचार व्यक्त किया। इस अवसर पर स्वागत भाषण एवम मंच संचालन शिक्षा शास्त्र विभाग के डॉ दशरथ भरसागर ने जबकि धन्यवाद भाषण कार्यक्रम के संयोजक शिक्षा शास्त्र विभाग के डॉ लक्ष्णमेंद्र ने किया। कार्यक्रम अवसर पर सभी शिक्षक, कर्मचारी और छात्र उपस्थित थे।