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BMC चुनाव में अकेले उतरेंगे उद्धव ठाकरे

मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हार के बाद क्या बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) इलेक्शन में उद्धव ठाकरे की पार्टी अकेले मैदान में उतरेगी? मुंबई के सियासी गलियारों में 2 वजहों से इसकी चर्चा चल रही है. पहली वजह शिवसेना (यूबीटी) का कांग्रेस से मोहभंग होना है. हाल के दिनों में 3 ऐसे संकेत मिले हैं, जिससे उद्धव की पार्टी का कांग्रेस के प्रति मोहभंग देखा गया है. चर्चा की दूसरी वजह शिवसेना का हिंदुत्व की तरफ मजबूती से रुख करना है. बीएमसी को शिवसेना का गढ़ माना जाता रहा है और 1996 से लगातार यहां ठाकरे के उम्मीदवार मेयर बनते रहे हैं.क्या एकला चलो की ओर बढ़ रहे उद्धव?महाराष्ट्र चुनाव में हार के बाद विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष और उद्धव के करीबी अंबादास दानवे ने कांग्रेस पर निशाना साध दिया. दानवे का कहना था कि कांग्रेस अति आत्मविश्वास में थी, जिसकी वजह से महाविकास अघाड़ी को हार का सामना करना पड़ा. दानवे ने तो यहां तक कह दिया कि चुनाव से पहले ही कांग्रेसी मंत्री पद के लिए सूट-बूट सिला रहे थे. इसके ठीक एक दिन बाद झारखंड में नई सरकार का शपथग्रहण समारोह था. यहां जेएमएम और कांग्रेस ने संयुक्त रूप से जीत हासिल की है. नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में उद्धव ठाकरे को भी न्यौता भेजा गया था.

इस समारोह में अखिलेश, ममता और राहुल समेत विपक्ष के कई नेता आए, लेकिन उद्धव नहीं आए. रांची में उद्धव की गैरमौजूदगी चर्चा में रही. उद्धव ने यहां अपनी पार्टी की तरफ से किसी को भेजा भी नहीं. वहीं अब उद्धव ठाकरे की पार्टी ने जिस तरीके से इंडिया गठबंधन में नेता पद के लिए ममता के दावेदारी का समर्थन किया है, उससे भी सियासी गलियारों में चर्चा तेज है.हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर उद्धव सेनाउद्धव ठाकरे की पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर हो गई है. ठाकरे के करीबी मिलिंद नार्वेकर ने बाबरी ढांचा ढहाए जाने की बरसी पर एक पोस्ट किया, जिस पर कांग्रेस और सपा बिफर पड़ी. सपा विधायक रईस शेख और अबू आजमी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. आजमी ने तो सपा को महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन से बाहर निकलने का भी ऐलान कर दिया. वहीं कांग्रेस भी असहज बताई जा रही है. दूसरी तरफ शिवेसना (उद्धव) हिंदुत्व के मुद्दे पर खुद को फ्रंटफुट पर लाना चाहती है. विधान परिषद सदस्य मिलिंद नार्वेकर उद्धव ठाकरे के निजी सहयोगी हैं. ऐसे में नार्वेकर के पोस्ट की चर्चा जोर-शोर से हो रही है.चुनाव से पहले कांग्रेस से हुई थी खटपट विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और उद्धव की पार्टी में खटपट देखने को मिली थी. दोनों के बीच सीट बंटवारे को लेकर आखिरी वक्त तक पेच फंसा था. इसके बाद दोनों पार्टियों ने कई सीटों पर एकसाथ उम्मीदवार उतारने का फैसला किया था. इतना ही नहीं, दोनों के बीच मतदान दिन तक कई सीटों पर टशन देखने को मिला. सोलापुर दक्षिण सीट पर कांग्रेस के कद्दावर नेता सुशील कुमार शिंदे ने मतदान के दिन उद्धव कैंडिटेट के बदले निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा कर दी. इस वजह से उद्धव के उम्मीदवार सोलापुर दक्षिण सीट पर काफी पीछे चले गए.शिवसेना का गढ़ रहा है बीएमसी को शिवसेना का गढ़ माना जाता है. महाराष्ट्र में सरकार किसी की भी रही हो, लेकिन बीएमसी की सत्ता में शिवेसना ही रही है. 1995 में शिवेसना बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र की सत्ता में आई. 1996 में बीएमसी के चुनाव हुए, जहां पर शिवेसना ने जीत हासिल की. तब से लेकर अब तक 12 मेयर मुंबई नगरपालिका में बने हैं. दिलचस्प बात है कि सभी शिवसेना के ही रहे हैं. विधानसभा चुनाव में जीत के बाद एकनाथ शिंदे अपनी शिवसेना असली शिवसेना बता रहे हैं. बीएमसी जीतने में भी अगर शिंदे सेना कामयाब हो जाती है तो उद्धव के लिए संगठन बचाना भी मुश्किल हो जाएगा.

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