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क्या नागपुर का किला ढहा पायेंगे कांग्रेसी

रणनीति लोकसभा चुनाव में मिली सफलता को महाविकास
आघाडी (एमवीए) नागपुर जिले में भुनाना चाह रही है। नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुख्यालय है, ऐसे में एमवीए देशभर को मेसेज देना चाहती है कि उसने आरएसएस का गढ़ भेद दिया। यही वजह है कि यहां प्रचार के लिए राहुल गांधी से लेकर शरद पवार और उद्धव ठाकरे आ रहे है। वही, संघ भी माइक्रो लेवल पर तैयारी में जुटा है। जिले में 12 विधानसभा सीटे है, जिनमें से 8 पर बीजेपी के विधायक है, जबकि 3 कांग्रेस और एक सीट पर एनसीपी (शरद गुट) का कब्जा है।
नागपुर दक्षिण-पश्चिम यहां से डीसीएम देवेंद्र फडणवीस मैदान में है। वह यहीं से पहले भी जीते है। इस बार उनके सामने कांग्रेस के प्रफुल्ल गुडघें पाटील है। वह इस क्षेत्र से 3 बार नगरसेवक रहे हैं। 2014 में भी उन्होंने फडणवीस को चुनौती दी थी। कांग्रेस का कहना है कि इस बार फडणवीस की जीत का मार्जिन कम रहेगा। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां से 35,000 मतों की बढ़त मिली थी। नागपुर दक्षिण यहां से बीजेपी ने विधायक मोहन मते को उम्मीदवार बनाया है। उनके खिलाफ कांग्रेस ने गिरीश पांडव को दोबारा मौका दिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में मते ने पांडव को करीब 4,000 वोट से हराया था।
नागपुर-पूर्व बीजेपी ने कृष्णा खोपडे को चौथी बार उम्मीदवार बनाया है। हालांकि, उन पर ऐटि इनकंबेंसी का खतरा मंडरा रहा है। उनके सामने शरद गुट के शहर अध्यक्ष दूनेश्वर पेठे हैं। पिछली बार वह निर्दलीय लड़े थे और करीब 8,000 वोट से हार गए थे। वहीं, अजित गुट की आभा पाण्डेय और कांग्रेस के पुरुषोत्तम हजारे पार्टियों से बगावत कर दी है। गडकरी को इसी सीट से 78,000 वोट की लीड मिली थी।
नागपुर-मध्य इस बार से बीजेपी ने हलबा समाज के विकास कुंभारे का टिकट काट दिया है। इससे यह समाज नाराज है। इसीलिए, समाज के रमेश पुणेकर निर्दलीय उतर गए हैं। बीजेपी ने फडणवीस के करीबी प्रवीण दटके को मौका दिया है, जिनका विरोध हो रहा है। कांग्रेस ने बंटी शिल्के को उतारा है। सीट पर कुल 11 प्रत्याशी हैं। यह वही सीट है, जहां संघ का मुख्यालय है। विपक्ष यहां पूरा जोर लगा रहा है।
नागपुर उत्तर यहां से कांग्रेस ने विधायक नितिन राउत को एक बार फिर मौका दिया है। वहीं, बीजेपी ने डॉ. मिलिंद माने को मैदान में उतारा है। 2014 के चुनाव में डॉ. माने ने नितिन राउत को हराया था, लेकिन 2019 में राउत से हार गए।
नागपुर-पश्चिम कांग्रेस ने यहां विकास ठाकरे को फिर से उतारा है। उनके सामने बीजेपी के सुधाकर कोहले हैं। कोहले 2014 में नागपुर-दक्षिण से विधायक थे। 2019 में उनका टिकट काटकर मोहन मते को दिया गया। तब से वह हाशिये पर चले गए। नामांकन से ऐन पहले उन्हें उम्मीदवारी दी गई। यहां से कांग्रेस के नरेंद्र जिचकर बागी बन गए है। जिचकर और ठाकरे कट्टर राजनीतिक दुश्मन हैं। तीनों उम्मीदवार कुनबी समाज से है। हालांकि, यहां बीजेपी के उत्तर भारतीय उम्मीदवार मांगा गया था, क्योंकि यहां इनकी खासी संख्या है। पिछले 10 साल में नागपुर में बहुत काम हुआ है। एम्स अस्पताल, कैंसर इंस्टिट्यूट, लॉ यूनिवर्सिटी, ट्रिपल आईटी, आईआईएम, समृद्धि महामार्ग, मेट्रो, स्टेडियम, जैसे कई काम हुए। लोगों को रोजगार मिला, तो जनता हमें वोट क्यों नहीं देंगे?
हिंगणा : बीजेपी ने विधायक समीर मेघे को फिर से मौका दिया है। वहीं, शरद गुट ने रमेश बंग को उतारा है, जो पूर्व मंत्री हैं। हालांकि, मेघे को ज्यादा उम्मीद नजर आ रही है।
कामठी: बीजेपी से टेकचंद सावरकर का टिकट काटकर प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकले खद चनाव मैदान में हैं। कांग्रेस से यहां पूरा जोर लगा रहा है।
नागपुर- उत्तर यहां से कांग्रेस ने विधायक नितिन राउत को एक बार फिर मौका दिया है। वहीं, बीजेपी ने डॉ. मिलिंद माने को मैदान में उतारा है। 2014 के चुनाव में डॉ. माने ने नितिन राउत को हराया था, लेकिन 2019 में राउत से हार गए।
नागपुर-पश्चिम कांग्रेस ने यहां विकास ठाकरे को फिर से उतारा 1: है। उनके सामने बीजेपी के सुधाकर कोहले हैं। कोहले 2014 में नागपुर-दक्षिण से विधायक थे। 2019 में उनका टिकट काटकर मोहन मते को दिया गया। तब से वह हाशिये पर चले गए। नामांकन से ऐन पहले उन्हें उम्मीदवारी दी गई। यहां से कांग्रेस के नरेंद्र जिचकर बागी बन गए हैं। जिचकर और ठाकरे कट्टर राजनीतिक दुश्मन हैं। तीनों उम्मीदवार कुनबी समाज से है। हालांकि, यहा बीजेपी के उत्तर भारतीय उम्मीदवार मांगा गया था, क्योंकि यहां इनकी खासी संख्या है। पिछले 10 साल में नागपुर में बहुत काम हुआ है। एम्स अस्पताल, कैंसर इंस्टिट्यूट, लॉ यूनिवर्सिटी, ट्रिपल आईटी, आईआईएम, समृद्धि महामार्ग, मेट्रो, स्टेडियम, जैसे कई काम हुए। लोगों को रोजगार मिला तो जनता हमे वोट क्यों नहीं देंगे ?
हिंगणा : बीजेपी ने विधायक समीर मेघे को फिर से मौका दिया है। वहीं, शरद गुट ने रमेश बंग को उतारा है, जो पूर्व मंत्री हैं। हालांकि, मेघे को ज्यादा उम्मीद नजर आ रही है।
कामठी: बीजेपी से टेकचंद सावरकर का टिकट काटकर प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकले खुद चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस से
सुरेश भोयर हैं। पिछले चुनाव में भी भोयर ही थे।
उमरेड : राजू पारवे ने कांग्रेस से पिछला चुनाव जीता था, लेकिन लोकसभा में विधायक पद और पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया। शिंदे सेना ने शामिल हो गए, तो सांसद कृपाल तुमाने का टिकट काटकर पारवे को लोकसभा में उतार दिया। हालांकि, वह चुनाव हार गए। इस सीट को लेकर बीजेपी और शिंदे सेना में अंतिम समय तक खींचतान चली। आखिर बीजेपी ने सुधीर पारवे को उम्मीदवार बना दिया।
रामटेक निर्दलीय चुनाव जीतने वाले आशीष जायसवाल को इस बार शिंदे सेना ने मौका दिया है, वहीं उद्धव गुट से विशाल बरबटे मैदान में है। इस पर कांग्रेस शुरू से दावा कर रही थी, लेकिन नहीं मिली। इससे कांग्रेसी नेता व पूर्व मंत्री राजेंद्र मुलक निर्दलीय उतर गए। मुलक अब भी कांग्रेस के जिला अध्यक्ष है। कांग्रेस की ओर से यहां फ्रेंडली फाइट बताई जा रही है।
सावनेर : कांग्रेस के सुनील केदार पिछला चुनाव जीते थे, लेकिन अब की उनकी पत्नी अनुजा मैदान में है। बीजेपी ने आशीष देशमुख को उतारा है। आशीष के भाई अमोल देशमुख ने शरद गुट से टिकट मांगा था। उन्हें टिकट नहीं मिला, तो बगावती रुख अपनाते हुए निर्दलीय लड़ रहे हैं।
काटोल : विधायक अनिल देशमुख के बेटे सलिल को शरद गुट ने मौका दिया है। उनके सामने बीजेपी से चरण सिंह ठाकुर हैं। पिछले चुनाव में अनिल ने चरण को हराया था। वहीं, श्रीकांत जिचकर के बेटे याज्ञवल्क्य निर्दलीय मैदान में हैं।

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